बाटी
बनजारों की बाटी राजस्थान की बाटी से भिन्न होती है। जवार, बाजरे अथवा मक्का की मोटी रोटी को ये लोग बाटी कहते हैं।
गलवाणी
गलवाणी बनजारों का प्रिय चोष्य है। गलवाणी राजस्थान की गुडवाणी का परिवत्तित रूप है। गुडवाणी से इसमें अधिक चीजें गिरती हैं। पहले एक बर्तन में गुड को पानी में अच्छी तरह घोलते है। गुड को कोई डली शेष न रहने पर उसे अच्छी तरह औटाते हैं। एक चूल्हे पर गुड का पानी गरम होता है, दूसरे चूल्हे पर आटा सेकते हैं। आटा जब अच्छी तरह सिक जाता है तो गुड का पानी उसमें डाला जाता है। पानी इतना अधिक होता है कि आटा हलवे में नहीं बदलता। जब गलवाणी तैयार हो जाती है, उसमें पिसी हुई इलायची, दालचीनी और काली मिर्च डालते हैं। घियाकस से कसकर थोड़ा खोपरा बुरखते हैं। गलवाणी की सुगन्ध दूर-दूर तक पहुँच जाती है। सुगन्धित पदार्थों के डालने के बाद भी गलवाणी को दो-तीन उबाल और देते हैं।
राबड़ी
हरियाणा और राजस्थान में एक खाद्य- पदार्थ राबड़ी कहलाता है। जिस दिन माता की बासी रोटी बनती है, उस दिन राबड़ी अनिवार्य रूप से रँधती है। गर्मी के दिनों में अमीर-गरीब सभी राबड़ी का कलेवा करते हैं। गरीबों के लिए राबड़ी वरदाना ही समझिए। बाजरा, जौ या मक्के के मोटे आटे से राबड़ी बनती है। पहले आटे को छाछ में अच्छी तरह घोलते हैं, फिर उसे चूल्हे पर चढ़ाते है। मिट्टी की हाँडी में राबड़ी अच्छी बनती है। राँधने के बाद रात में उसे यों ही रख देते हैं। गरम-गरम राबड़ी दूध डालकर खाते हैं। सवेरे ठंडी राबड़ी में इतनी छाछ मिलाई जाती है कि उसे आसानी से पिया जा सकता है। महाराष्ट्र के बनजारे राबड़ी बनाते हैं, किन्तु वह राजस्थान-हरियाणा की राबड़ी से भिन्न होती है। बनजारों की राबड़ी एक तरह की कढ़ी है। राजस्थान तथा अन्यत्र बेसन से कढ़ी बनती है, किन्तु दक्षिण के बनजारे बेसन की जगह मूंग का आटा काम में लाते हैं। बनजारे राबड़ी (कढ़ी) में हरा धनिया, हरीमिर्च तथा पोदीना भी डालते हैं। बेसन की कढ़ी की अपेक्षा बनजारों की राबड़ी अधिक स्वादिष्ट होती है।
विशेष अवसरों पर बनने वाले प्रमुख व्यञ्जनों के नाम हैं-कढ़ाबो, कढ़ाई, कुल्लर, धमोला, गुंजा, सुनवाली। गेहूँ का दलिया कढ़ावा कहलाता है। गेहूँ के दरदरे आटे का पहले घी में भूनते हैं। फिर उसमें शकर तथा पानी डालते है। अधिक आटे का दलिया हो तो कढ़ावा थोड़े, से आटे का हो तो कढ़ाई। कढ़ावों या कढ़ाई देवी-देवताओं के लिए बनते हैं। थोड़ा-सा दलिया आग पर डालकर जोत देखते हैं। राजस्थान में इस तरह की कढ़ाई हलवा या सीरे की होती है।